Saturday 11 June 2016

यह योग तो नहीं है !!!



यह योग तो नहीं है !!!
गत वर्ष जब लगभग 150 देशों के समर्थन से यू एन ने प्रस्ताव पारित कर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया तो प्रसन्नता के साथ साथ गर्व भी हुआ था और ऐसा महसूस हुआ था कि शायद एक लगभग लुप्त हो चुकी भारतीय विद्या फिर से देश में अपना चर्म प्रभाव दिखाएगी परंतु वास्तविक्ता इस के विपरीत निकली। देश में जगह-जगह योग शिविरों का आयोजन किया गया। आयोजनों पर करोड़ों रुपये खर्च हुए। दिल्ली के इंडिया गेट पर हुआ आयोजन तो गिनीज़ बुक ऑफ वर्ड रेकॉर्ड में भी दर्ज हो गया। देश के राजनीतिक, आध्यात्मिक, शिक्षा, मीडिया, खेल एवं अन्य क्षेत्रों के अति प्रीतिष्टित व्यक्तियों ने इस में हिस्सा लिया। लेकिन योग के नाम पर हुई केवल भौतिक प्रक्रिया(physical exercise) और वो भी विवादास्पद। कभी सूर्य नमस्कार पर विवाद तो कभी ॐ शब्द को लेकर। इस बात को  लेकर भी दुख हुआ कि कुछ देश के जाने माने प्रतिष्ठित योग गुरु एवं आध्यात्मिक गुरुओं ने भी इसे योग बताकर ही इस का समर्थन किया जबकि वो वास्तव में जानते थे कि यह योग नहीं है। जहां तक मेरे अनुभव का सवाल है तो मुझे तो मोदी जी का व्यक्तित्व भी ऐसा लगता है जैसे वो वास्तविक योग के बारे में काफी कुछ जानते हैं।
योग में एवं योगासन(pre-yoga posture) में बहुत बड़ा अंतर है। यौगिक प्रक्रिया एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसका मुख्य उद्देश्य है ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों, मन, बुद्धि एवं तीनों गुणो (सात्विक, राजसिक एवं तामसिक) की अवस्था पर पूरा कंट्रोल करना एवं शरीर के सभी 9 द्वारों को सतोगुण से प्रज्वलित करना। ध्यान योग, कर्म योग, भक्ति योग, हठ योग, अष्टांग योग, कुंभक, रेचक एवं अन्य कई प्रकार के योग हैं।  योगाभ्यास द्वारा अद्भुत शक्तियों को प्राप्त किया जा सकता है। यह हमारे उद्देश्य और योग की प्रकृति पर निर्भर करता है। इसका विस्तृत वर्णन हमारे शास्त्रों में मिलता है। कुंभक एवं रेचक के द्वारा ही ऋषि मुनि हजारों वर्ष तक जीवित रहते थे। यौगिक प्रक्रिया द्वारा ही संजय ने महाभारत के युद्ध का आँखों देखा हाल धृतराष्ट्र को महल में बैठ कर सुनाया था। योग  द्वारा प्राप्त शक्ति भौतिक शक्ति अथवा वैज्ञानिक शक्ति से अधिक शक्तिशाली होती है।  
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस फिर आने को है। यदि इस बार भी केवल इसको आयोजनों तक ही सीमित रखा गया और 21 जून के बाद इसे फिर भुला दिया गया तो एक अच्छी और सार्थक पहल बेकार चली जाएगी। सभी लोगों को चाहिए कि योग को मानवता से जोड़ें; जाति अथवा धर्म  से नहीं। भारत में न तो योगियों कि कमी है और न ही योग गुरुओं की। यदि योग गुरु स्वयं अथवा अपने शिष्यों के माध्यम से बच्चों को वास्तविक योग की  शिक्षा दें तो आने वाली पीड़ी पश्चिमी सभ्यता के असर से मुक्त होकर सात्विक संस्कारों से सुसज्जित हो कर भारत को फिर से दुनिया के शिखर पर खड़ा कर देगी।


No comments:

Post a Comment