Saturday 26 December 2015

अहंकार बनाम आत्म सम्मान



अहंकार बनाम आत्म सम्मान


मनोवैज्ञानिकों के संदर्भ में, "अहंकार"(Ego) हमारे चेतन मन की अवधारणा  है जो किसी भी व्यक्ति में उसके अहम भाव की पहचान है लेकिन मेरे विचार में अहंकार हमारी वो  प्रवृत्ति है जो हमारी गलतियों की स्वीकारोक्ति करने से हमें रोकती है। यह जानते हुए भी कि हम गलत हैं हम उसे सही सिद्ध करने के लिए अनुचित तर्क ढूंदते रहते हैं और उस पर अटल रहते हैं।  दूसरी ओर 'आत्म सम्मान'  हमारी बुनियादी और तार्किक सिद्धांतों पर अटल रहने  की प्रवृत्ति है । आम तौर पर अहंकारयुक्त व्यक्ति अहंकार को ही आत्म सम्मान समझने लगता है जो सर्वथा गलत है। दो मुख्य परिस्थितियाँ हमें अहंकार अथवा आत्म सम्मान कि और प्रेरित करती हैं। पहली यह कि आप गलत हैं लेकिन आप उस का सामना नहीं कर सकते हैं यह स्थिति अहंकार  को जन्म देती है दूसरे जब आप ठीक हैं लेकिन लोग उसको स्वीकार नहीं करना चाहते इस स्थिति से आत्म सम्मान की भावना उत्पन्न होती है। अहंकार असत्य का रास्ता है जबकि आत्म सम्मान सत्य का। अहंकार युक्त व्यक्ति को अपने हितैषी भी दुश्मन लगने लगते हैं। यहाँ तक कि वो अपने माता पिता, गुरुजनों एवं बड़ों का अभिवादन  करने में भी संकोच करने लगता है। सारी और थैंक्स जैसे शब्द उसकी वाणी से लुप्त हो जाते हैं। अहंकार युक्त व्यक्ति सदा दूसरों को उसके अवगुणो से पहचानता है जबकि आत्म सम्मान से युक्त व्यक्ति दूसरों को उसके गुणो से पहचानता है। इन दिनों परिवारों में, पड़ोस में, कार्यस्थल में अथवा मित्रमंडल में अहंकार कटु संबन्धों का मुख्य कारण है। इससे दूसरों को नीचा दिखाने की प्रवृति का विकास होता है। यदि कोई हमें उचित सत्कार नहीं देता तो हम बिना कारण जाने ही उससे ईर्ष्या करने लगते हैं तथा अपने मन की शांति को भंग कर देते हैं। हालांकि त्याग की भावना अहंकार और आत्मसम्मान दोनों से श्रेष्ठ है तथापि आज के युग मे त्याग एवं आत्म सम्मान की  मिश्रित भावना अधिक उन्नतिदायक एवं सुखदायक है। अहंकार कमजोर व्यक्तियों का दिशा निर्धारण करता है जबकि बुद्धिमान व्यक्ति अहंकार पर अपना प्रभुत्व रखते हैं। अहंकार उस ऐसिड के समान है जो उस बर्तन को भी जला देता है जिस में वो स्वयं रखा होता है। ऐसे कई पति-पत्नी, मित्रगण हैं जो अहंकार अथवा आत्म सम्मान की भावना से ग्रस्त हो कर अलग अलग हो चुके हैं जबकि उनमे वास्तविक प्रेम अभी भी जीवित है। यहां तक कि ऐसे लोग भी हैं जिनसे यह पूछा गया कि वो अलग क्यों हैं तो उनका कहना था कि वो स्वयं नहीं जानते। महान कवि गुलज़ार साहिब ने कितने सुंदर शब्दों में इस की अभिव्यक्ति की है उन्हें यह ज़िद थी के हम बुलाते, हमें यह उम्मीद वो पुकारें अपने अहंकार को जीतने से हम जिंदगी का सबसे बड़ा युद्ध जीत जाते हैं। सामान्यता हम दूसरों को अपनी सच्ची दृष्टि से नहीं अपितु अहम भाव से ग्रस्त दृष्टि से देखते हैं जिसके परिणाम स्वरूप हमारी आँखों पर अहंकार का पर्दा ड़ल जाता है। यदि हम सभी प्राणियों को अहंकार के पर्दे को जलाकर सच्ची दृष्टि से देखें तो सभी आत्मसम्मान के साथ खुशी खुशी जी सकते हैं।





Thursday 3 December 2015

कैसे आती है घर में सुख, संपति और समृद्धि ?



कैसे आती है घर में सुख, संपति और समृद्धि ?

इस दुनिया में हर व्यक्ति यह चाहता है कि उसके घर में सुख शांति हो धन-धान्य की कमी न हो बच्चे गुणवान और विद्वान बने घर में बरकत हो लेकिन ऐसा हो नहीं पाता। हालांकि मेरा यह मानना है कि कर्म सबसे प्रधान है हमारा सम्पूर्ण जीवन पिछले जन्मों  के कर्मफल एवं वर्तमान कर्मों पर निर्भर करता है लेकिन फिर भी कई बातें ऐसी होती हैं जिनको अपनाने से घर  की  दशा में अभूतपूर्व बदलाव आता है। ऐसी ही कुछ बातों का उल्लेख मैं करने जा रहा हूँ। 

1.               सर्वप्रथम कुलगुरु की पूजा का विशेष महत्व है। ऐसा ना करने से पित्र भी रूठे रहते हैं। जिससे पित्रदोष बना रहता है परिणाम स्वरूप सुख का अभाव रहता है। अतः कुलगुरु की पूजा अवश्य करनी चाहिए। 

2.               कुलगुरु के बाद गुरु की पूजा अवश्य करनी चाहिए। यहाँ यह ध्यान देने योग्य बात है कि आप कुलगुरु को ही अपना गुरु मानते हैं अथवा किसी अन्य को। कुलगुरु पूरे परिवार का एक ही होता है परंतु गुरु अलग अलग हो सकते हैं। 

3.               शास्त्रों के मतानुसार पत्नी को सुबह पति से पहले उठ जाना चाहिए अगर किसी कारणवश ऐसा संभव न हो तो कम से कम दोनों एक समय पर अवश्य उठ जाएँ। 

4.               घर में नारियों को उचित सम्मान दें जहां नारियों के साथ अभद्र भाषा बोली जाती है अथवा उन्हे शारीरिक या मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है वहाँ सुख नहीं हो सकता।
5.               घर में आवश्यकता से अधिक भगवान की अथवा  देवी देवताओं की तस्वीरें या मूर्तियाँ न रखें। केवल उतनी ही हों जिनका उचित सम्मान किया जा सके। ड्राइंग रूम में अथवा जहां अक्सर बाहर के लोग  आते जाते हैं वहाँ पवित्र मूर्तियाँ अथवा तस्वीरें नहीं रखनी चाहिए। 

6.               यदि पति व पत्नी अलग अलग रुचि वाले देवी देवता को मानते हैं तो वहाँ कुछ न कुछ अभाव अवश्य बना हता है। 

7.               यदि पति के पूजा करते समय पत्नी सोई हुई हो अथवा पत्नी की पूजा के समय पति सोया हुआ हो तो वहाँ सुख का अभाव रहता  है। 

8.               जिस घर में पति पत्नी एक साथ प्रेम से सात्विक भोजन करते हों एक साथ सोते हों तथा एक साथ पवित्र मन से  पूजा करते हों। वहाँ सारे कष्ट दूर हो जाते हैं तथा देवी देवताओं का निवास होता है इस में तनिक भी संदेह नहीं है। इसके विपरीत यदि किसी घर में इन तीनों में से एक भी कार्य पति पत्नी एकसाथ न करते हों तो वहाँ सुख संभव नहीं है। अतः साधारण जीवन के लिए भी कम से कम तीन में से दो कार्य एकसाथ अवश्य करें।

9.               घर के मंदिर एवं उस के आस पास के स्थान की सफाई स्वयं करनी चाहिए नौकर से नहीं करवानी चाहिए। 

10.           घर की तथा अपने शरीर की स्वछता का ध्यान रखें। 

11.           बेकार के तंत्र, मंत्र, टोटके आदि के चक्कर में न पड़ें। याद रखें भगवान की पूजा सर्वश्रेष्ठ है तथा भगवान से ऊपर कोई नहीं। 

12.           एक साल में कम से कम एक बार पत्नी के लिए स्वयं नए वस्त्र खरीद कर लाएँ एवं साल में कम से कम एक बार उसे उपहार अवश्य दें। 

13.           ब्रह्म मुहूर्त में (मुख्य रूप से सूर्योदय से 108 मिनट पहले) एवं संध्या के समय (मुख्य रूप से सूर्यास्त  से 108 मिनट बाद) शारीरिक सम्बन्धों से परहेज करना चाहिए। 

14.           घर के किसी भी व्यक्ति को मुख्य द्वार की और पैर पसार कर नहीं लेटना चाहिए। 

15.           जिस बिस्तर पर घर के पत्नी-पत्नी सोते हों वो बिस्तर केवल छोटे बच्चों के साथ साझा करना चाहिए मेहमानो के सोने का प्रबंध उस बिस्तर पर न करें शादिशुदा लड़की व दामाद का भी नहीं। आवश्यकता पड़ने पर पुत्र एवं पुत्रवधू उस का इस्तेमाल कर सकते हैं।  

Tuesday 17 November 2015

करवाचौथ की टेंशन



करवाचौथ की टेंशन
यूं तो करवाचौथ, दिवाली और भैयादूज हर बार ही घर का बजट खराब कर देते हैं क्योंकि यह तीनों त्योहार 15 दिनों के अंतराल में ही पड़ जाते हैं पर इस बार खास बात यह थी कि करवाचौथ 30 अक्तूबर को पड़ रहा था यानि कि महीने के अंतिम दिनों में, जब जेब का बुरा हाल होता है। 29 अक्तूबर को मैं  जब शाम को रोज कि तरह घर आया तो मेरी पत्नी ने स्वभाव के विपरीत मुस्कराहट से किवाड़ खोला। पहले पानी तथा फिर फटाफट चाय भी पिलाई। मेरी हालत ठीक वैसी ही थी जैसी कि ईद से पहले दिन बकरे की  होती है। हमारे देश में किसी भी सभ्य पत्निव्रता पुरुष में इतनी हिम्मत नहीं कि वो पत्नी का जन्म दिन, शादी की सालगिरह अथवा करवाचौथ को भूल जाए। तो मर्यादा निभाते हुए चाय के पश्चात मैंने पूछ लिया के सुबह के लिए फेनी, फल, मिठाई आदि क्या-क्या लाना है। तो वो बोली चलो मार्केट चल लेते हैं वहीं देख लेंगे। मैं तो पहले ही अपने ऊपर आए खतरे को भाँप चुका था। लेकिन मैंने खुशी खुशी हामी भर दी। मार्केट सजी हुई थी ज़ोरों शोरों से ख़रीदारी चल रही थी। ज्वेल्लेरी की दुकान के पास से गुजरते वक्त मेरी सांस धौंकनी की  तरह चल रही थी लेकिन वो पाँच मीटर का सफर आराम से कट गया। शायद वो जानती थी कि सोना या हीरा तो मास्टर जी अपने कपड़े बेच कर भी नहीं दिलवा सकते। आगे चूड़ियों की  दुकान पर भीड़ जमा थी। रंग बिरंगी चूड़ियाँ सब के मन को लुभा रही थी। सो मेरी पत्नी भी चूड़ियाँ देखने लगी। कुछ देर बाद उसने सुंदर सी चूड़ियाँ पसंद कर ली तथा भावतौल के बाद मुझे तीन सौ रुपए देने को कहा पैसे देकर हम आगे चल पड़े हलवाई की दुकान की  और। लेकिन रास्ते में जगह जगह टेंट लगे हुए थे और मेहंदी लगवाने वाली पतिव्रता नारियों की  कतारें लगी हुई थी। मेरी पत्नी ने भी मेहंदी लगवाने कि इच्छा प्रगट की। मैंने हामी भरदी। लगभग एक  घंटे के बाद मेरी पत्नी का नंबर आया मेहंदी लगवाने के बाद उसने मुझ पर पूरी दयादृष्टि दिखाते हुए कहा बस चार सौ रुपये देदो आधे आधे हाथों पर ही लगवाई है। मेहंदी लगवाने के बाद अब दस बज चुके थे भूख भी लग रही थी परंतु अब घर जाकर खाना तो बनाया नहीं जा सकता था क्योंकि दोनों हाथों पर मेहंदी लगी हुई थी। सो मैंने एक रैस्टौरेंट से खाना पैक करवाया और सुबह के लिए मठी, फेनी, मिठाई आदि लेकर घर आ गए। तभी मेरी पत्नी का मोबाइल बजा। मेहंदी लगी होने के कारण फोन मैंने उठाया, मैसेज आया था कि आप के द्वारा दिये गए ऑर्डर कि साड़ी डिस्पैच कर दी गयी है कृपया डिलीवेरी के वक़्त 2500/- का भुगतान करें। मेरा कंठ सूख चुका था नींद उड़ चुकी थी मैंने चुपचाप वो मैसेज श्रीमतीजी को पढ़वा दिया। मेरे चेहरे से वो मेरी मनोदशा समझ चुकी थी लेकिन 55 कि आयु में भी मेनका चरित्र द्वारा मुझे सहज कर चुकी थी।
अगले दिन सुबह सूर्योदय से पहले मेरी पत्नी खा-पीकर व्रत धारण कर चुकी थी। मैंने बाहर से सुबह का अखबार उठाया और उसमें जो कुछ पंफ्लेट भी थे फटाफट डस्टबिन में डाले क्योंकि वो सारे ही करवाचौथ की बम्पर सेल के बारे में थे। इसके बाद मैं अपने नित्य कर्म में लग गया। श्रीमती जी की मेहंदी खिल उठी था चेहरे पर चमक थी। तभी वो मेरे पास आकर बैठ गयी और मुस्कराते हुए बोली कुछ पैसे दे दो ब्यूटी पार्लर जाना है मैंने कहा, तुम बहुत सुंदर लग रही हो ब्यूटी पार्लर जाकर क्या करोगी? लेकिन मेरी इस घिसी पिटी तारीफ का उस पर कोई असर नहीं हुआ वो बोली कि आज उसने 2100 वाला पैकेज 1000 में कर रखा है और फिर मैं यह सब कुछ आपके लिए ही तो कर रही हूँ। मैंने चुपचाप 1000 रुपये निस्वार्थ भाव से उसके हाथ में थमा दिये। मेरी भूख उड़ चुकी होने के कारण मेरा वर्त अपने आप ही हो गया था। फिर भी मेरी पत्नी लाखों में एक थी उसे फिजूल खर्च करने कि आदत बिलकुल नहीं थी। केवल पूरे साल में 2 या 3 अवसरों पर ही तो ऐसा होता था। और वो भी इस लिए कि एक चरित्रवान नारी की सारी अपेक्षाएँ अपने पति से ही तो होती हैं। यही सोच कर मैं काफी हद तक संतुष्ट हो गया था।  वो ब्यूटी पार्लर चली गयी। मैं मन ही मन सोच रहा था कि भारतीय नारियां पति की दीर्घायु के लिए कितनी तपस्या करती हैं। तभी मैंने इंटरनेट खोला और विभिन्न देशों के लोगों की औसत आयु देखने लगा मैं यह देख कर हैरान था कि भारत औसत आयु के मामले में विश्व में 136वें क्रम पर था। भारत में प्रति व्यक्ति औसत आयु मात्र 66.4 वर्ष थी जबकि यूरोपियन देशों की  82 वर्ष। और हैरानी कि बात यह कि भारत में ही पुरुष कि औसत आयु 64.7 वर्ष थी जबकि महिलाओं की 68.2 वर्ष। दोपहर के 2 बज गए थे मेरी पत्नी ब्यूटी पार्लर से लौट चुकी थी और अब शृंगार की तैयारी में जुट गयी थी। 3 बजे उसने पूजा के लिए निकलना था और मैंने अपने काम पर। फिर भी में यह चाहता था कि काम पर जाने से पहले एक बार पूर्ण सुसज्जित अपनी पत्नी को देख लूँ। सो ईश्वर ने मेरी मनोकामना पूर्ण कर दी। में अपने काम के लिए निकल चुका था। रास्ते में हर आयु वर्ग कि नारियां पूर्ण रूप से सुसज्जित हो कर पूजा के लिए जा रही थी लेकिन ऐसा लगता था कि किसी सौन्दर्य प्रतियोगिता में भाग लेने जा रही हों। मेरा कार्य स्थल आ चुका था। मैं रोज़ कि तरह बच्चों को पढ़ाने में व्यस्त हो गया। आज मुझे शाम को 8 बजे से पहले ही घर वापिस पहुँचना अनिवार्य था। खैर फिलहाल 5 बजे थे तभी मेरे कानो में बहुत ही सुरीले और मधुर स्वर सुनाई पड़े सुथड़ा मनायीं ना, रूठड़ा जगायीं ना मैं समझ गया कि आस-पास कहीं पूजा हो रही है। लेकिन कितना सम्मोहन, भावुकता  और ऊर्जा थी उन स्वरों में। ऐसा केवल पारंपरिक लोक गीतों में ही दिखाई देता है। 7 बजे मैं  घर के लिए रवाना हो गया। मैंने रास्ते में से ही नारियल पानी ले लिया था। घर में चाँद निकलने का इंतज़ार हो रहा था। लगभग 8:25 पर चन्द्र देवता ने दर्शन दिये मेरी पत्नी ने छत पर जाकर चंद्र देवता को अर्ध्य दिया फिर मैंने पानी पिलवाकर व्रत तुड़वाया उसने मेरे पाँव छूए और फिर सदा क्रोधित रहने वाली मेरी पत्नी ने शांति की प्रतिमूर्ति बन सात्विक भाव से अपनी बाहों का हार मेरे गले में डाल दिया जैसे पीपल से अमरलता लिपटी हो।  इन चंद क्षणों के दो आत्माओं के सात्विक मिलन से मैं अपने सारे विकार भूल चुका था। हमने प्यार से मिलकर खाना खाया और सोने के लिए चले गए। नदी, सागर में समा चुकी थी। अगले दिन का सूर्योदय हो चुका था इस यथार्थ के साथ कि मेरी जिंदगी का एक करवा चौथ कम हो चुका था।