Thursday 3 July 2014

SHIV TANDAV STROT




सभी भक्तों को मेरा प्रणाम। श्री शिव तांडव स्त्रोत अब तक के सबसे महान शिवभक्त श्री रावण की रचना है। मैंने इस को हिन्दी एवं इंग्लिश में अर्थ सहित स तरह लिखने का प्रयास किया है ताकि भक्तजन इसे आसानी से गा सकें एवं समझ सकें। मेरा भरसक प्रयास रहा है की इस में अशुद्धि ना हो परंतु फिर भी यदि  पाठकगण को कोई अशुद्धि दिखाई दे तो मुझे अवश्य बताएं मैं उनका आभारी रहूँगा।
जटाटवी-गलज्जल-प्रवाह-पावित-स्थले
गलेऽव-लम्ब्य-लम्बितां-भुजङ्ग-तुङ्ग-मालिकाम्
डमड डमड डमड डमन निनाद वड्ड ऽमर्वयं
 चकार-चण्ड्ताण्डवं-तनोतु-नः शिवः शिवम् .. १

(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जिन शिव जी की सघन जटारूप वन से प्रवाहित हो गंगा जी की धारायं उनके कंठ से होती हुई संपूरण धरती को पवित्र बना रही हैं जिनके गले में बडे एवं लम्बे सर्पों की मालाएं लटक रहीं हैं, तथा जिन  शिव जी की  डम-डम-  डमरू की ध्वनि पूरे वातावरण में गूंज रही है जो शिवजी प्रचण्ड ताण्डव करते हैं, वे शिवजी हमारा कल्याण करें




जटा-कटासंम्भ्रम भ्रमन् निलिम्प-निर्झरी
विलोल वीच वल्लरी-विराजमान-मूर्धनि .
धगद्धगद्धग-ज्ज्वल-ललाट्-पट्ट-पावके
किशोरचन्द्रशेखरे रतिः प्रतिक्षणं मम .. २ 

(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जिन शिव जी के जटाओं में अतिवेग से विलास पुर्वक भ्रमण कर रही देवी गंगा की लहरे उनके शीश पर लहरा रहीं हैं, जिनके मस्तक पर अग्नि की प्रचण्ड ज्वालायें धधक-धधक करके प्रज्वलित हो रहीं हैं, उन किशोर चंद्रमा से विभूषित शिवजी में मेरा अंनुराग प्रति क्षण बढता रहे।


धरा-धरेन्द्र-नंदिनी विलास-बन्धु-बन्धुर
स्फुर-द्दिगन्त-सन्तति प्रमोद-मान-मानसे .
कृपा-कटाक्ष-धोरणी-निरुद्ध-दुर्धरापदि
क्वचि-द्दिगम्बरे-मनो विनोदमेतु वस्तुनि .. ३


(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जो पर्वतराजसुता(पार्वती जी) के विलासमय रमणीय कटाक्षों में परम आनन्दित रहते हैं, जिनके तांडव नृत्य से पूरा ब्रह्मांड रोमांचित हो रहा है तथा जिनकी कृपादृष्टि से भक्तों की समस्त विपत्तियां दूर हो जाती हैं, ऐसे दिगम्बर (आकाश को वस्त्र सामान धारण करने वाले) शिवजी की आराधना से मेरा चित्त सर्वदा आनन्दित रहे।
जटा-भुजङ्ग-पिङ्गल-स्फुरत्फणा-मणिप्रभा
कदम्ब-कुङ्कुम-द्रवप्रलिप्त-दिग् वधू मुखे
मदान्ध-सिन्धुर-स्फुरत्त्व-गुत्तरी-यमे-दुरे
मनो विनोदम् अद्भुतं-बिभर्तु-भूत भर्तरि .. ४

(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)

जिनकी जटाओं में लिपटे सर्पों के फण की मणियों के प्रकाश, केसरिया वर्ण प्रकाश पुंज से सभी दिशाओं को प्रकाशित करते हैं जिससे आकाश एक बड़ी दुल्हन के मुख की तरह प्रतीत हो रहा है और जिनके  गजचर्म से विभुषित वस्त्र हवा में उड़ते प्रतीत हो रहे हैं । मैं उन शिवजी की भक्ति में आनन्दित रहूँ जो सभी प्राणियों के आधार एवं रक्षक हैं 
सहस्र लोचन प्रभृत्य-शेष-लेख-शेखर
प्रसून-धूलि-धोरणी-विधू-सराङ्घ्रि-पीठभूः
भुजङ्गराज-मालया-निबद्ध-जाटजूटक:
श्रियै-चिराय-जायतां चकोर-बन्धु-शेखरः .. ५
 (भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जिन शिव जी के  चरणों की धूल से  इन्द्र आदि के मस्तक शोभायमान हैं जिनकी जटा पर लाल सर्प (सर्पराज) विराजमान है, वो चकोर मित्र चन्द्र को धारण करने वाले (चन्द्र शेखर) हमें चिरकाल के लिए सम्पदा दें।

ललाट-चत्वर-ज्वलद् धनञ्जय-स्फुलिङ्गभा-
निपीत-पञ्च-सायकं-नमन्नि-लिम्प-नायकम्
सुधा-मयूख-लेखया-विराजमान-शेखरं
महाकपालि-सम्पदे-शिरो-जटाल-मस्तुनः..

(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जिन शिव जी ने कामदेव का गर्व दहन करते हुए, कामदेव के पांचों बाणों को अपने विशाल मस्तक की अग्नि (तीसरी आँख की)ज्वाला से भस्म कर दिया, तथा जो सभी देवों द्वारा पूज्य हैं, तथा चन्द्रमा और गंगा द्वारा सुशोभित हैं, वे कपाली मुझे भी अपनी जटाओं में उपस्थित संपदा का अंश प्रदान करें।
कराल-भाल-पट्टिका-धग-द्धग-द्धगज् जव्लद्
द्धनञ्जय आहुतीकृत-प्रचण्डपञ्च-सायके
धरा-धरेन्द्र-नन्दिनी-कुचाग्रचित्र-पत्रक
प्रकल्प-नैकशिल्पिनि-त्रिलोचने-रतिर्मम  

(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जिनके मस्तक से धक-धक करती प्रचण्ड ज्वाला ने कामदेव को भस्म कर दिया तथा जिन शिवजी के ताण्डव नृत्य द्वारा पृथ्वी(हिमालय पुत्री अर्थात पार्वती) पर अति सुंदर चित्रकारी(सृष्टि की रचना) शक्ति (देवी पार्वती) के सहयोग से की जा रही है उन त्रिनेत्र (शिव जी) में मेरी प्रीति अटल हो




नवीन-मेघ-मण्डली-निरुद्ध-दुर्धर-स्फुरत्
कुहू-निशी-थिनी-तमः प्रबन्ध-बद्ध-कन्धरः
निलिम्प-निर्झरी-धरस्त-नोतु कृत्ति-सिन्धुरः
कला-निधान-बन्धुरः श्रियं जगद्धुरंधरः .. ८
 (भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जिनका कण्ठ नवीन मेंघों की घटाओं से परिपूर्ण अमावस्या की रात्रि के सामान काला है, जो कि गज-चर्म, गंगा एवं बाल-चन्द्र द्वारा शोभायमान हैं तथा जो कि जगत का बोझ धारण करने वाले हैं, वे शिव जी हमे सभी प्रकार की सम्पन्नता प्रदान करें।
प्रफुल्ल-नीलपङ्कज-प्रपञ्च-कालिमप्रभा
वलम्बि-कण्ठ-कन्दली-रुचिप्रबद्ध-कन्धरम् .
स्मरच्छिदं पुरच्छिदं भवच्छिदं मखच्छिदं
गजच्छिदांधकछिदं तमंतक-च्छिदं भजे .. ९
(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जिनका कण्ठ और कन्धा पूर्ण खिले हुए नीलकमल की फैली हुई सुन्दर श्याम प्रभा से विभुषित है, (कंठ व गले की श्याम प्रभा, हलाहला विष को इंगित करता है जो भगवान शिव ने अपनी इच्छा शक्ति से समुद्र मंथन के समय लिया था) जो कामदेव और त्रिपुरासुर के विनाशक, संसार के दु:खो के काटने वाले, दक्षयज्ञ विनाशक, गजासुर एवं अन्धकासुर के संहारक हैं तथा जो मृत्यु को वश में करने वाले हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ 

अखर्व सर्व मङ्गला कला-कदंब मञ्जरी
रस-प्रवाह-माधुरी विजृंभणा-मधुव्रतम् .
स्मरान्तकं पुरान्तकं भवान्तकं मखान्तकं
गजान्त-कान्ध-कान्तकं तमन्तकान्तकं भजे .. १०

(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
जो कल्यानमय, अविनाशी, समस्त कलाओं के रस का अस्वादन करने वाले हैं, जो कामदेव को भस्म करने वाले हैं, त्रिपुरासुर, गजासुर, अन्धकासुर के सहांरक, दक्षयज्ञविध्वसंक तथा स्वयं यमराज के लिए भी यमस्वरूप हैं, मैं उन शिव जी को भजता हूँ।

जयत् वद् भ्र-विभ्रम-भ्रमद् भुजङ्गम् श्वसद्
विनिर्गमत् कर्म-स्फुरत् कराल-भाल-हव्यवाट्
द्धिमिद् द्धिमिद् द्धिमिद् ध्वनि मृदन्ग तुन्ग मंगलः  
ध्वनि-क्रम-प्रवर्तित प्रचण्ड ताण्डवः शिवः .. ११

 (भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
उनकी घूमती हुई आँखें संपूरण जगत पर अपना स्वामित्व प्रदर्शित कर रही हैं। उनकी आँखों की इस गति से गर्दन में लिपटे सर्प फूफकार कर रहे हैं। उनकी तीसरी आँख से  प्रचंड अग्नि की ज्वाला निकल रही है जिसके मध्य मृदंग की मंगलकारी उच्च धिमद-धिमद  की ध्वनि के साथ ताण्डव नृत्य में लीन शिव जी सर्व रूप से सुशोभित हो रहे हैं।


स्पृषद्  विचित्र तल्पयोर भुजङ्ग मौक्तिका सर्जोर
गरिष्ठ रत्न लोष्ठयोः सुहृद विपक्ष पक्षयोः
तृणारविन्द चक्षुषोः प्रजा मही महेन्द्रयोः
समप्रवृत्तिकः कदा सदाशिवं भजाम्यहम् ...१२

(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
कब मैं कठोर पत्थर एवं कोमल शय्या, सर्प की  मणियों की मालाओं अथवा मिट्टी की मालाओं, बहुमूल्य रत्न एवं मिट्टी के टुकडों, शत्रू एवं मित्रों, हरी आंखो वाले अथवा कमल के समान आँखों वाले, साधारण व्यक्ति एवं जग पालक सब को समान दृष्टि से देखूंगा? कब में सदाशिव में दृष्टि  एवं व्यवहार में समानता लाते हुए पूजा करूंगा? 

कदा निलिम्प-निर्झरी निकुञ्ज-कोटरे वसन्
विमुक्त-दुर्मतिः सदा शिरःस्थम्  अञ्जलिं वहन् .
विमुक्त-लोल-लोचनो ललाम-भाल लग्नकः
शिवेति मंत्रम् उच्चरन् कदा सुखी भवाम्यहम् .. १३

(भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
कब मैं गंगा जी की पवित्र गुफा में निवास करूंगा?  कब मैं निष्कपट हो, सिर पर अंजली धारण कर शिव को भजूँगा ?  कब मैं अपने चंचल नेत्रों (पापयुक्त दृष्टि) से सदा के लिए मुक्ति प्राप्त करूंगा ? कब मैं मस्तक पर त्रिनेत्र वाले शिव जी का मंत्रोच्चारण करते हुए अक्षय सुख को प्राप्त करूंगा ?
इदम् हि नित्यम् एवं उक्तम् उत्तमोत्तमं स्तवं
पठन्स्मरन्ब्रुवन्नरो विशुद्धि-मेति-संततम् .
हरे गुरौ सुभक्तिमा शुयातिना न्यथा गतिं
विमोहनं हि देहिनां सुशङ्करस्य चिंतनम् .. १४ 
 (भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
यह उत्तम में भी  उत्त्मोत्त्म स्त्रोत कहा गया है इस शिव स्त्रोत को शुद्ध मन से शिव में ध्यान करके, निर्विघ्न रूप से नित्य पढने, सुनने  या श्रवण करने मात्र से प्राणि पवित्र हो, परं ब्रह्म  शिव में स्थापित हो जाता है तथा सभी प्रकार के भ्रमों से मुक्त हो जाता है।
पूजावसानसमये दशवक्त्रगीतं
यः शंभु पूजन परं पठति प्रदोषे .
तस्य स्थिरां रथ गजेन्द्र तुरङ्ग युक्तां
लक्ष्मीं सदैव सुमुखिं प्रददाति शंभुः .. १५
 (भगवान शिव के चरणों में मेरा कोटी कोटी नमन जिनके तांडव नृत्य से  आशीर्वाद की धाराएँ भक्तों के शरीर में प्रवाहित होती हैं)
(भगवान शिव अपने पवित्र तांडव नृत्य में तल्लीन हैं)
पूजा  के अंत में इस रावणकृत शिवताण्डवस्तोत्र को  गाने  से लक्ष्मी स्थिर रहती हैं तथा भक्त रथ, गज, घोडा आदि सम्पदा से सर्वदा युक्त रहता है। श्री शंभू की कृपा भक्त पर सदा बनी रहती है।
ॐसोहम नमामि, ॐशूनयम् नमामि, ॐअवगतम् नमामि, ॐअभयम् नमामि, ॐअचलम् नमामि, ॐनिरंजनम् नमामि, ॐविहंगनम् नमामि, ॐश्रीनाथम् नमामि, ॐश्रीनाथम् नमामि, ॐश्रीनाथम् नमामि, हरिॐतत्सत् ….1










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