Thursday 12 January 2017

MY QUOTE

LIKE GOOD TIME, DIFFICULT TIME IS ALSO A GIFT OF GOD AS IT GIVES YOU AN OPPORTUNITY TO UNDERSTAND THE PEOPLE AROUND YOU.

Monday 9 January 2017

श्री भगवान जी से वार्तालाप भाग 2



श्री भगवान जी से वार्तालाप
भाग 2
सुबह लगभग 3 बजे का समय रहा होगा मैं अर्ध निद्रा की अवस्था में था कि चिर-परिचित आवाज़ सुनाई दी। क्या पूछना चाहते हो पुत्र!
गोविंद: प्रणाम भगवन, सर्वप्रथम तो मैं यह जानना चाहता हूँ कि क्या कलियुग में आप का साक्षात्कार अत्यंत कठिन हैं?
श्री भगवान जी: नहीं पुत्र, कलियुग में तो यह सर्वाधिक आसान हैं।
गोविंद: लेकिन सतयुग में तो सभी लोग सदाचारी और आप के भक्त होते हैं।
श्री भगवान जी: इसीलिए तो सतयुग में मुझे पाना कठिन है।
गोविंद: मैं समझा नहीं भगवन
श्री भगवान जी: सतयुग में भक्ति और प्रेम का कॉम्पीटीशन बहुत अधिक होता है और कलियुग में बहुत कम। तुम तो जानते ही हो की कमजोर विद्यार्थियों की कक्षा में प्रथम आना आसान होता है।
गोविंद: फिर भी किसी विरले को ही आप के दर्शन कलियुग में सुलभ हैं।
श्री भगवान जी: वत्स, वास्तव में कलियुग में लोग मुझे नहीं मुझसे कुछ चाहते हैं। जो लोग शुद्ध मन से मुझे चाहते हैं उनसे तो मैं कभी भी दूर नहीं हूँ।
गोविंद: भगवन, कई लोगों का मत है कि जल्दी ही प्रलय होने वाली है और आप का अवतार भी होने वाला है।
श्री भगवान जी: यह दोनों ही बातें असत्य हैं वत्स! कलयुग की  आयु 4,32000 वर्ष है। और अभी तो मात्र 6000 वर्ष ही हुए हैं। मैं तो वैसे भी युग के अंत में ही धरती पर मनुष्य रूप में आता हूँ।
गोविंद: भगवन, जब पुरुष जन्म को नारी की अपेक्षा श्रेष्ठ माना जाता है तो फिर आप ने नारी को पुरुष से अधिक सुंदर क्यों बनाया?
श्री भगवान जी: मैंने तो पुरुष को ही अधिक सुंदर बनाया है। यह तो पुरुष की  दृष्टि की गुणवत्ता है कि उसे स्त्री अधिक सुंदर दिखाई देती है। वरना पुरुष को रिझाने कि लिए स्त्री 16 शृंगार क्यों करती?
गोविंद: भगवन, यह सोलह शृंगारों में से सब से उत्तम शृंगार कौन सा माना जाता है?
श्री भगवान जी: वास्तव में तो सात्विक मन और चेहरे पर मुस्कराहट ही पुरुष स्त्री दोनों के लिए  सब से बड़ा शृंगार है।
गोविंद: आप सत्य कहते हैं प्रभु ; भगवन कृपा कर बताएं कि इस युग में जिस पर पूर्ण विश्वास अथवा प्रेम हो वही धोखा क्यों दे  देता है?
श्री भगवान जी: बड़ा विचित्र प्रश्न कर रहे हो वत्स; धोखा तो दे ही वही सकता है जिस पर  तुम पूर्ण विश्वास करते हो अथवा प्रेम करते हो। लेकिन मुझ से प्रेम करके तुम्हें कभी धोखा नहीं होगा।
गोविंद: फिर सच्चे मित्र को कहाँ ढूँढा जाऐ प्रभु?
श्री भगवान जी: सुनो पुत्र; यदि आध्यात्मवाद में देखना चाहो  तो अपनी सभी इच्छाऍ त्याग दो और सभी प्राणियों में खुद को देखो तो सभी तुम्हारे मित्र होंगे अन्यथा यदि भौतिकवाद में देखना चाहो तो माता, पिता एवं गुरु को छोड़ कर कोई अन्य तुम्हारा मित्र तभी तक होगा जब तक तुम भी उस के किसी काम आ सकते हो।
गोविंद: आप के चरणों में फिर से कोटी कोटी नमन प्रभु! आप मुझे अति  महत्वपूर्ण ज्ञान दे रहे हैं। प्रभु आप के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भुगतना पड़ता है। लेकिन मैंने कई पति-पत्नी में  देखा है कि पति तो आप का भक्त, सात्विक एवं सदाचारी है परंतु इसके विपरीत पत्नी अत्यंत क्रोधी ............................................
श्री भगवान जी: मैं समझ गया वत्स; ऐसा तब होता है जब पति को पिछले जन्म के पापों का और पत्नी को पिछले जन्म के पुण्यों का फल समान समय पर मिल रहा हो।
गोविंद: कभी कभी ऐसा प्रतीत होता है भगवान कि यह युग नारी प्रधान युग बन रहा है।
श्री भगवान जी: नारी प्रधान तो बनेगा परंतु एक सीमा तक। नारी की पहचान फिर भी या तो पुरुष से होगी अथवा पुरुषुत्व से होगी। पंडित की पत्नी किसी भी जाती की हो पंडिताइन कहलाएगी। मास्टर की पत्नी कितनी भी कम पड़ी लिखी हो मास्टरनी कहलाएगी इस के विपरीत ऐसा नहीं होगा कि किसी महिला अध्यापिका के पति को लोग मास्टर कहने लगें।
गोविंद: परंतु भगवन...............
श्री भगवान जी: अब हमें चलना होगा पुत्र;
गोविंद: प्रणाम भगवन, और इसी के साथ स्वप्न भंग हो गया।
  


Saturday 11 June 2016

यह योग तो नहीं है !!!



यह योग तो नहीं है !!!
गत वर्ष जब लगभग 150 देशों के समर्थन से यू एन ने प्रस्ताव पारित कर 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया तो प्रसन्नता के साथ साथ गर्व भी हुआ था और ऐसा महसूस हुआ था कि शायद एक लगभग लुप्त हो चुकी भारतीय विद्या फिर से देश में अपना चर्म प्रभाव दिखाएगी परंतु वास्तविक्ता इस के विपरीत निकली। देश में जगह-जगह योग शिविरों का आयोजन किया गया। आयोजनों पर करोड़ों रुपये खर्च हुए। दिल्ली के इंडिया गेट पर हुआ आयोजन तो गिनीज़ बुक ऑफ वर्ड रेकॉर्ड में भी दर्ज हो गया। देश के राजनीतिक, आध्यात्मिक, शिक्षा, मीडिया, खेल एवं अन्य क्षेत्रों के अति प्रीतिष्टित व्यक्तियों ने इस में हिस्सा लिया। लेकिन योग के नाम पर हुई केवल भौतिक प्रक्रिया(physical exercise) और वो भी विवादास्पद। कभी सूर्य नमस्कार पर विवाद तो कभी ॐ शब्द को लेकर। इस बात को  लेकर भी दुख हुआ कि कुछ देश के जाने माने प्रतिष्ठित योग गुरु एवं आध्यात्मिक गुरुओं ने भी इसे योग बताकर ही इस का समर्थन किया जबकि वो वास्तव में जानते थे कि यह योग नहीं है। जहां तक मेरे अनुभव का सवाल है तो मुझे तो मोदी जी का व्यक्तित्व भी ऐसा लगता है जैसे वो वास्तविक योग के बारे में काफी कुछ जानते हैं।
योग में एवं योगासन(pre-yoga posture) में बहुत बड़ा अंतर है। यौगिक प्रक्रिया एक आध्यात्मिक प्रक्रिया है जिसका मुख्य उद्देश्य है ज्ञानेन्द्रियों, कर्मेन्द्रियों, मन, बुद्धि एवं तीनों गुणो (सात्विक, राजसिक एवं तामसिक) की अवस्था पर पूरा कंट्रोल करना एवं शरीर के सभी 9 द्वारों को सतोगुण से प्रज्वलित करना। ध्यान योग, कर्म योग, भक्ति योग, हठ योग, अष्टांग योग, कुंभक, रेचक एवं अन्य कई प्रकार के योग हैं।  योगाभ्यास द्वारा अद्भुत शक्तियों को प्राप्त किया जा सकता है। यह हमारे उद्देश्य और योग की प्रकृति पर निर्भर करता है। इसका विस्तृत वर्णन हमारे शास्त्रों में मिलता है। कुंभक एवं रेचक के द्वारा ही ऋषि मुनि हजारों वर्ष तक जीवित रहते थे। यौगिक प्रक्रिया द्वारा ही संजय ने महाभारत के युद्ध का आँखों देखा हाल धृतराष्ट्र को महल में बैठ कर सुनाया था। योग  द्वारा प्राप्त शक्ति भौतिक शक्ति अथवा वैज्ञानिक शक्ति से अधिक शक्तिशाली होती है।  
अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस फिर आने को है। यदि इस बार भी केवल इसको आयोजनों तक ही सीमित रखा गया और 21 जून के बाद इसे फिर भुला दिया गया तो एक अच्छी और सार्थक पहल बेकार चली जाएगी। सभी लोगों को चाहिए कि योग को मानवता से जोड़ें; जाति अथवा धर्म  से नहीं। भारत में न तो योगियों कि कमी है और न ही योग गुरुओं की। यदि योग गुरु स्वयं अथवा अपने शिष्यों के माध्यम से बच्चों को वास्तविक योग की  शिक्षा दें तो आने वाली पीड़ी पश्चिमी सभ्यता के असर से मुक्त होकर सात्विक संस्कारों से सुसज्जित हो कर भारत को फिर से दुनिया के शिखर पर खड़ा कर देगी।


श्री भगवान जी से वार्तालाप



श्री भगवान जी से वार्तालाप
विचारों के अंतर्द्वंद पर नींद हावी हो गई थी। मैं गहरी नींद में सो चुका था। कुछ समय बाद एक अजीब सी रोशनी हुई एवं नींद में ही एक आवाज़ सुनाई दी; पूछो वत्स! मैं तुम्हारी शंका दूर करने आया हूँ।
प्रणाम भगवन, अचानक मेरे होंठों से यह शब्द निकले।
श्री भगवान जी: पूछो पुत्र!
गोविंद: भगवन,  सर्वप्रथम मुझे यह बताएं कि लोग लाखों-करोड़ों रूप में आप की पूजा करते हैं लेकिन क्या  शिव अथवा भोलेनाथ अथवा शिव गोरक्षनाथ के रूप में आप सर्वोपरि हैं?
श्री भगवान जी: यह सत्य है पुत्र।
गोविंद: लेकिन रामायण के अनुसार तो आप स्वयं श्री राम का नाम जपते हैं। (मंगल भवन अमंगल हारी, उमा सहित जेहू जपत पुरारी)
श्री भगवान जी: यह भी सत्य है पुत्र।
गोविंद: मैं समझा नहीं भगवन
श्री भगवान जी: हरी और हर में भेद मत करो वत्स। तुमने रामायण में शायद यह नहीं पड़ा कि रावण से युद्ध करने से पहले श्री राम ने शिव लिंग की स्थापना की।
गोविंद: भगवन, तो क्या श्रीराम, श्रीकृष्ण, श्रीहनुमान अथवा आपके अन्य किसी रूप में कोई अंतर नहीं है?
श्री भगवान जी: सुनो वत्स, भगवान एवं भगवान के अवतार में केवल इतना ही अंतर है कि अवतार के रूप में मैं मनुष्य रूप धारण कर के प्रत्येक युग में केवल एक बार किसी विशेष उद्येश्य से धरती पर आता हूँ। लेकिन उस समय भी अपने मूल रूप में कैलाश पर उपस्थित रहता हूँ। कभी-कभी तो मैं किसी दिव्य आत्मा को ही अपने प्रतिनिधि के रूप में किसी छोटे से कार्य हेतु पृथ्वी पर भेजता हूँ परंतु लाखों लोग उन्हें भी भगवान मानना शुरू कर देते हैं।
गोविंद: आत्मा और परमात्मा तो एक ही हैं न भगवन।
श्री भगवान जी: नहीं पुत्र। आत्मा प्रत्येक जड़ एवं चेतन्य रूप में विद्यमान है। आत्मा का आकार एवं शक्ति सीमित होती है। परंतु परमात्मा के साथ ऐसा नहीं है। जो सम्पूर्ण वैभव, सम्पूर्ण त्याग, सम्पूर्ण शक्ति, सम्पूर्ण योग, सम्पूर्ण सौन्दर्य, सम्पूर्ण विद्याओं  एवं सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का स्वामी है वह परमात्मा है। जिस प्रकार सूर्य की किरणों में सूर्य के सभी गुण होते हुए भी सूर्य भिन्न होता है इसी प्रकार परमात्मा आत्मा से भिन्न होता है।
गोविंद: क्या यह सत्य है भगवन कि आप को विभिन्न रूपों में अलग-अलग रंग के पुष्प अथवा व्यंजन पसंद हैं।
श्री भगवान जी: युग एवं काल के अनुसार मेरे अवतार के रूप में परीवर्तन होता है। तथा उसी अनुसार मेरी रुचि होती है। परंतु श्रद्धा एवं प्रेम के पुष्प तथा व्यंजन तो मुझे हर रूप में प्रिय हैं।
गोविंद: भगवन, क्या नारी को कुछ विशेष परिस्थितियों में आप की पूजा करने की मनाही है। कुछ लोग नारी को कुछ परिस्थितियों में अपवित्र समझते हैं।
श्री भगवान जी: यह मिथ्या धारणा है वत्स! अवतार को अपने गर्भ से जन्म देने वाली नारी भला कैसे अपवित्र हो सकती है।
गोविंद: एक शंका है भगवन, श्री गणेश जी आप के पुत्र हैं परंतु गणेश पूजन तो शिव विवाह के समय भी किया गया था। \
श्री भगवान जी: श्री गणेश जी मेरे आदि पुत्र हैं और उमाजी मेरी आदि शक्ति। उमाजी का स्वरूप और नाम,  काल एवं युग के साथ बदलता है परंतु गणेशजी वही रहते हैं इसलिए व्यर्थ भ्रम में मत पड़ो
गोविंद: भगवन, आपका आहवाहन किस मंत्र अथवा आरती से श्रेष्ठ होता है।
श्री भगवान जी: जो तुम्हारे मन से रचित हो और प्रेम सहित तुम्हारी वाणी पर आए।
गोविंद: भगवन आपका साक्षात दर्शन करके आपके चरणों का अमृत रस पीने की अति तीव्र अभिलाषा है।
श्री भगवान जी: उचित समय पर यह भी होगा वत्स। तब तक तुम अपने गुरु में ही मुझे किसी भी रूप में देख सकते हो। अब हम चलते हैं।  
गोविंद: प्रणाम भगवन, और इसी के साथ स्वपन भंग हो गया।