Monday 26 October 2015

यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता




यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता


यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता (जहाँ नारियों की पूजा होती है वहाँ देवता निवास करते हैं) यह अर्ध श्लोक नारियों को अत्यंत प्रिय है एवं नारियां इसे समय समय पर यथा स्कूल, कॉलेज, टीवी आदि में वाद विवाद प्रतियोगिता में पुरुषों पर अपनी श्रेष्टता  सिद्ध करने के लिए प्रायः प्रयोग करती हैं। परंतु क्या यह व्यवहारिक जीवन में सार्थक है? क्या मैं नारियों की पूजा करने लगूँ तो वहाँ देवता निवास करेंगे? और क्या तब उसे स्वयं नारी ही स्वीकार कर लेगी ? मेरे विचार में यह अवश्य ही सतयुग में लिखा गया होगा तथा इसके शाब्दिक अर्थ एवं वास्तविक भावार्थ  में बहुत अंतर है। भावार्थ यह है कि जहां नारियां पूजनीय होती है वहाँ देवता निवास करते हैंअर्थात जहां  नारियों की कार्य शैली, उनका जीवन, चरित्र एक आदर्श होता है तब वो देवी तुल्य होती हैं तो अवश्य ही वहाँ देवता निवास करते हैं। शास्त्रों के अनुसार शर्म एवं लाज नारी का प्रमुख आभूषण है। मुस्कराहट नारी का प्रमुख शृंगार है एवं आँसू नारी का प्रमुख अस्त्र है।  नारी ही विश्व जननी है। नारी ही ईश्वर को जन्म देती है।  यह सत्य है कि समाज में नारी को उचित सम्मान मिलना चाहिए। कोई भी समाज नारी को सम्मान दिये बिना प्रगति नहीं कर सकता ।  सभी धर्मों के मतानुसार नारी का अपमान घोर पाप है श्रीमदभगवद गीता के अनुसार तो अपनी पत्नी के अतिरिक्त प्रत्येक नारी को  अपनी माँ के समान समझना चाहिए। आज जब दिन प्रतिदिन नारियों पर अपराध की घटनाएँ बड्ती जा रहीं है तो इस विषय पर एक स्वतंत्र एवं निष्पक्ष विचार विमर्श की आवश्यकता महसूस होती है। हमें उन सब घटकों पर सोचना होगा जो इस दशा के लिए ज़िम्मेवार हैं। पिछले कुछ दशकों मे हमारी दिनचर्या, पहनावे, कार्यप्रणाली एवं रहन-सहन में अभूतपूर्व बदलाव आया है। युवा पीड़ी का झुकाव पश्चिमी सभ्यता की और बड्ता जा रहा है। शर्म एवं लाज लुप्त होती जा रही है।  जो  नारियां शारीरिक अथवा मानसिक प्रताड्ना से गुज़र रहीं हैं अथवा गुज़र चुकी हैं यदि आप उनसे इसका कारण जानने की कोशिश करें तो अधिकतर केसों में स्वयं नारी ही नारी की प्रताड्ना का कारण है भले ही वो सास के रूप में हो, जेठानी के रूप में अथवा ननद के रूप में। नारी पर नारी द्वारा  अथवा पुरुष द्वारा प्रताड्ना के क्या मुख्य कारण हैं इन पर गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है।
जब भी किसी नारी के यौन शोषण अथवा प्रताड्ना का मामला तूल पकड़ता है तो धरने, प्रदर्शन एवं कथित पीड़ित के लिए सहानीभूति रखने वालों का अंबार लग जाता है। नेता, धरमगुरु तथा अन्य लोग अपनी अपनी राय देने लगते हैं परंतु किसी निश्चित निष्कर्ष पर नहीं पहुँच पाते। यह सत्य है आज के समाज को पुरुष प्रधान नहीं बनाया जा सकता। नारियां हर क्षेत्र में उन्नति कर रहीं हैं। परंतु यदि नारी और पुरुष दोनों एक दूसरे में अपनी आत्मा को देखें तथा अपनी दिनचर्या में पश्चिमी सभ्यता को छोड़ भारतीय सभ्यता को प्राथमिकता दें तो वो दिन दूर नहीं जब यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमन्ते तत्र देवता को चरितार्थ किया जा सकता है।